Friday 28 March 2014

गुजरात का विकास सिर्फ पिछड़ने में…..



गुजरात में पिछले पांच साल में आर्थिक वृद्धि दर में खासी कमी आई है। पिछले पांच साल में गुजरात के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2008 के 11 फीसदी और वित्त वर्ष 2011 के 11.2 फीसदी के मुकाबले घटकर वित्त वर्ष 2013 में 8 फीसदी रह गई। तेजी से वृद्धि करने वाले राज्यों में बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, त्रिपुरा, गोवा, केरल और ओडिशा के बाद गुजरात नौवें पायदान पर है। वैसे अगर पिछले छह सालों के औसत जीडीपी वृद्धि के लिहाज से देखें तो गुजरात सातवें पायदान पर रहेगा। 

गुजरात की शहरी एमसीई वृद्धि कम है
विशेषज्ञ गुजरात के अपेक्षाकृत खराब प्रदर्शन के लिए इसके बड़े आधार को वजह बताते हैं। वित्त वर्ष 2013 में बड़ी अर्थव्यवस्था वाले राज्यों मसलन महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश के बाद गुजरात पांचवें स्थान पर था। सीएसओ के आंकड़ों के अनुसार प्रति व्यक्ति आमदनी के लिहाज से भी गुजरात गोवा, दिल्ली, चंडीगढ़, पुडुचेरी, सिक्किम, महाराष्ट्र और हरियाणा के बाद आठवें पायदान पर है। हाल में गुजरात दौरे पर गए आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के विकास के दावे सही नहीं हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों की खपत वृद्धि के लिहाज से गुजरात 13वें नंबर पर था जबकि उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन बेहद खराब था। इसी अवधि में गुजरात की प्रति व्यक्ति आमदनी मौजूदा कीमत पर 14.9 फीसदी की चक्रवृद्धि दर से बढ़ी जबकि राष्ट्रीय औसत 14.6 फीसदी था। ग्रामीण एमपीसीई में 21.1 फीसदी चक्रवृद्धि के लिहाज से आंध्र प्रदेश सारणी में शीर्ष स्थान पर था। उसके बाद हरियाणा (20.4 फीसदी), तमिलनाडु (19.4 फीसदी) और राजस्थान (18.8 फीसदी) का स्थान था। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक गुजरात की शहरी एमपीसीई वृद्धि 15.1 फीसदी रही जो देश के 15.6 फीसदी औसत के मुकाबले कम थी।

गुजरात का कम विकास: रधुराम राजन
पिछले साल सितंबर में भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर और वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे रघुराम राजन के नेतृत्व वाले पैनल ने 'कम विकास सूचकांक' के पैमाने पर गुजरात को शीर्ष विकसित राज्यों में शामिल नहीं किया। पैलन ने गुजरात को पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, मणिपुर, नगालैंड और जम्मू कश्मीर जैसे कुछ राज्यों के साथ ही विकसित राज्यों की दूसरी श्रेणी में रखा जो असल में कम विकसित राज्य हैं। राजन समिति द्वारा प्रस्तावित नया सूचकांक 10 उप पैमानों मसलन मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग खर्च, शिक्षा, स्वास्थ्य, घरेलू सुविधाएं, गरीबी रेखा, महिला साक्षरता, कुल जनसंख्या में अनुसूचित जाति और जनजाति की हिस्सेदारी, शहरीकरण की दर, वित्तीय समावेशन और कनेक्टिविटी के औसत पर आधारित है।



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