Friday 4 April 2014

हालत ऐसी तो न थी मुसलामानों की...


2002 में गुजरात के गोधरा में हुए दंगों में लगभग 1000 लोग मारे गए थे पर मोदी उस पर चुप्पी ले ली है। और उसे भूल जाने को कह रहा है और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर नौजवान मुसलमानों को गुमराह कर रहे हैं। अगर हम 2002 के गोधरा के जनसंहार को भूल भी जाये तो भी आतंकवाद के दमन के नाम पर सिलसिलेवार ढंग से हो रही फर्जी मूठभेड़ो में मुसलमानों की हत्या को हम कैसे भुला पाएंगे। कुछ देर के लिए अगर हम इन क़ानूनी हत्यारों को भी भूल जाएँ और प्रदेश में पिछले 10 वर्षों के दौरान मुसलमानों की आर्थिक और शैक्षणिक विकास पर नजर दौड़ाए तो पता चलेगा की मोदी सरकार ने गुजरात के मुसलमानों के साथ किस प्रकार की भेदभाव की नीति को सुविचारित ढंग से आपनाया है।

गुजरात में मुसलमानों की जनसंख्या गुजरात की कुल जनसंख्या का 9.7% है पर वर्तमान सरकार द्वारा पिछले एक दशक में चलाये गए SJSRY (स्वर्ण जयंती शहरी रोज़गार योजना)  और NSAP (नैशनल सोशल असिस्टेंस प्रोग्राम)  योजना को छोड़कर ज्यादातर योजनाओं में मुसलमानों की भागीदारी उनके जनसंख्या के अनुपात से कम ही है। कृषि बीमा योजना में मुसलमानों की भागीदारी मात्र 3.5% है, जबकि पॉवर टिलर आवंटन के मामले में मुसलमानों की भागीदारी मात्र 1.4% और ट्रेक्टर के मामले में 4.1% है। गुजरात में मोदी के शासन काल में सहकारी बैंक या ग्रामीण विकास बैंक से वहां के मुसलमानों को किसी प्रकार का कोई कर्ज नहीं मिला है।

2004-05 में गुजरात में 41% मुसलमान सेवा क्षेत्र में नौकरी करते थे जो कि 2009-10 में घटकर 31.7% रह गया। उसी प्रकार 2004-05 में 59% मुसलमान स्वरोज़गार करते थे जो कि 2009-10 घटकर 53%रह गया। इसी काल के दौरान मुसलमानों कि वेतनभोगी नौकरियों में भागीदारी 17.5%से घटकर 14% हो गई। यह भी गौर करने वाली बात है कि गुजरात में अनियमित मजदूरी कि कुल भागीदारी में मुसलमानों का हिस्सा इसी कालावधि के दौरान 23% से बढ़कर 32% हो गया है। इसका मतलब तो यही है कि मोदी के शासनकाल के दौरान गुजरात में मुसलमानों को निम्न दर्जे के रोजगारो कि ओर धकेला जा रहा है।

2001 में जब गुजरात कि कुल साक्षरता दर 69.1% थी तब वहाँ के मुसलमानों में साक्षरता दर 73.5% थी जबकि 2007-08 में जब गुजरात कि कुल साक्षरता दर 74.9% हो गई तब भी वहाँ के मुसलमानों में साक्षरता दर 74.3% है। 6-14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों द्वारा किसी प्रकार के शैक्षणिक संस्थानों में नामांकित होने के मामले में गुजरात के हिन्दू और मुस्लिम समाज में औसत अंतर राष्ट्रीय औसत से कम है। क्या इन सब के पीछे गुजरात सरकार के द्वारा मुसलमानों के साथ किये जाने वाले भेदभाव कि नीति जिम्मेदार नहीं है? यदि हम तुलना ही करना चाहते हैं तो मोदी जी के शासन संभालने और उनके शासन संभालने के पूर्व के समय में गुजरात के मुसलमानों के जीवन स्तर की तुलना करनी चाहिए जिससे ये पता चल सकेगा कि मोदी जी ने गुजरात के मुसलमानों के साथ क्या किया है। इस आलोक में फैसला आपको करना है। इन हालात में मुसलमानों का चुनावी फ़ैसला क्या हो सकता है? 

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