Thursday 10 April 2014

मानव कल्याण सूचकांक में भी पिछड़ा गुजरात....



सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा व मोदी के प्रचार अभियान का एक मुख्य मुद्दा यह है कि यूपीए ने भारतीय अर्थव्यवस्था का सत्यानाश कर दिया है और मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार, भारत की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाईयों तक ले जाएगी। इन दावों में कितनी सच्चाई है?

देश का प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी का राज्य गुजरात मानव विकास से संबंधित एक सूचकांक में पिछड़ गया है, दूसरी तरफ सिक्किम जैसा छोटा सा राज्य इस सूचकांक में शीर्ष पर है। इस सूचकांक में गुजरात की रैंकिंग में लगातार और भारी गिरावट आई है। 

ओ.पी. जिंदल ग्लोबल युनिवर्सिटी (जेजीयू) ने गुरुवार को नीति प्रभावोत्पादकता सूचकांक (पीईआई) जारी करते हुए कहा, "गुजरात 1981 में 35 (राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों) राज्यों में 10वें स्थान पर था, जो 2001 में 17 पर चला गया और 2011 में 24वें स्थान पर चला गया।" इस अवसर पर मौजूद निर्णायकों में यूनिसेफ इंडिया के सलाहकार ए.के. शिवा कुमार ने कहा, "शत प्रतिशत सफाई व्यवस्था वाले सिक्किम में डायरिया के बेहद कम मामले सामने आए हैं।" 

विश्वविद्यालय के भारत लोकनीति रिपोर्ट 2014 (आईपीपीआर) के तहत जारी रिपोर्ट में विभिन्न राज्यों का मूल्यांकन नीतियों के परिणास्वरूप होने वाले विकास के आधार पर किया गया है। विश्वविद्यालय ने अपने बयान में कहा, "सूचकांक बहुआयामी है और इसमें मानव कल्याण से संबंधित चार उपसूचकांक शामिल हैं : जीविकोपार्जन के अवसर, सामाजिक रूप से सार्थक जीवन, जीवन की सुरक्षा और कानून का शासन तथा जीवन स्तर में लगातार सुधार के लिए सुविधाएं।" इस प्रथम आईपीपीआर को बुधवार को यहां योजना आयोग के सदस्य अभिजीत सेन ने लांच किया। रिपोर्ट का प्रकाशन विश्वविद्यालय और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय प्रेस ने मिलकर किया है। सेन ने रिपोर्ट जारी करते हुए गुजरात की रैंकिंग में गिरावट पर कहा, "ऐसा अवसंरचना सूचकांक के कारण हुआ है। ऐसा इसलिए नहीं हुआ है, क्योंकि गुजरात में अवसंरचना सुधार पर खराब काम किया गया है, बल्कि दूसरे राज्यों द्वारा अवसंरचना पर कहीं बेहतर कार्य किए जाने की वजह से है।"  
 
जिस समय पूरी दुनिया आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रही हो उस समय देश की अर्थव्यवस्था को एक ऐसी पार्टी के हाथ में सौंपना,  जिसमें एक भी सक्षम अर्थशास्त्री नहीं है,  आर्थिक आत्महत्या करने जैसा है। कुएं के मेंढ़क की तरह मोदी और भाजपा कभी वैश्विक आर्थिक संकट की बात नहीं करते और ना ही उसके कारणों में जाना चाहते हैं। अगर कोई भी यह कष्ट उठाएगा तो उसे यह समझ में आ जाएगा कि नवउदारवाद के धीमे जहर से रूग्ण होती जा रही अर्थव्यवस्था के लिए जिस ‘‘दवाई‘‘ की वकालत भाजपा और एनडीए कर रहे हैं, दरअसल, वह इसी धीमे जहर की जानलेवा डोज है।  

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